होली करीब आते ही मिलावटखोर सक्रिय हो गए हैं। बाजार में मिलने वाली मिठाई एवं अन्य खाद्य सामग्री में मिलावट की आशंका बढ़ गई है। इस पर रोक लगाने के लिए खाद्य प्रशासन द्वारा मार्च माह में अब तक 58 सैंपल लिए जा चुके हैं। लेकिन इनकी जांच रिपोर्ट आने में महीनों लग जाएंगे। ऐसे में यदि लिए गए सैंपल अमानक निकलते हैं तब भी कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि जिस स्लाट व दुकान से सैंपल लिए गए हैं, उसकी खाद्य सामग्री बिक चुकी होगी। दीपावली के दौरान भी यही होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक होली के पहले इन सैंपलों की रिपोर्ट जारी हो जानी चाहिए, ताकि अमानक खाद्य पदार्थ पर रोक लगाई जा सके। उल्लेखनीय है कि सैंपलों की रिपोर्ट अधिकतम 14 दिनों में जारी किए जाने का नियम है। लेकिन रिपोर्ट आने में इससे अधिक समय लग जाता है। हालांकि, खाद्य सुरक्षा आयुक्त के निर्देशों के बाद मार्च में कार्रवाई शुरू की गई है।
दूध में मिलाते हैं रिफाइंड आइल
खाद्य सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र दुबे ने बताया कि होली में सबसे अधिक डिमांड दूध की रहती है। इसे मिलवाटखोरों की चांदी का सीजन माना जाता है। मिलावटखोर क्रीम निकाले गए दूध में रिफाइंड आइल मिला देते हैं। इससे दूध में चिकनाई बन जाती है। यदि कोई अंगुली पर दूध डालकर जांच करना चाहे, तो उसे पता ही नहीं चल सकता कि क्रीम निकाली जा चुकी है। इतना ही नहीं दूध में सिंघाड़े का आटा और लिक्विड ग्लूकोज भी मिला दिया जाता है। दूध बेचने वाले कुछ लोग दूध को गाढ़ा करने के लिए मिल्क पाउडर और अन्य रासायनिक पदार्थ भी मिला देते हैं। इससे लोगों की सेहत पर भी काफी असर पड़ता है।ऐसे होती है जांच
आमतौर पर दूध में तीन तत्व विशेष तौर पर पाए जाते हैं। फैट (वसा) या सामान्य भाषा में कहें तो घी पाया जाता है। दूसरा दूध में एसएनएफ (सालिड नाट फैट) की मात्रा पाई जाती है और तीसरा दूध में पाया जाने वाला तत्व प्राकृतिक पानी है। इन तत्वों में गड़बड़ के कारण दूध अमानक स्तर का हो जाता है। सामान्यत: दूध में फैट की मात्रा मानक के अनुरूप होनी चाहिए। भैंस के दूध में 5.5 से नौ प्रतिशत तक फैट, गाय के दूध में 3.5 से 4.8 तक फैट होना चाहिए। जबकि मिश्रित दूध में 4 प्रतिशत से अधिक फैट होना चाहिए। वहीं, एसएनएफ की मात्रा भैंस के दूध में नौ प्रतिशत या इससे ज्यादा, गाय के दूध में 8.3 से 8.7 प्रतिशत तक होनी चाहिए।
दूध के उत्पादन और उसकी पूर्ति को देखते हुए यह मिलावटी दूध और उसके उत्पादों के सैंपल अब तेजी से लिए जा रहे हैं। इनकी रिपोर्ट अधिक से अधिक 14 दिनों में आनी चाहिए। लेकिन लैब में काम अधिक होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता है।