खरगोन….मनोज मालवीया… आज निमाड क्षेत्र के अति प्राचीन महालक्ष्मी देवी, ऊन के दर्शन करें करावते है जो जिला मुख्यालय खरगोन से 16 किलोमीटर दूर पश्चिम में खरगोन – बड़वानी रोड पर अति प्राचीन लगभग 99 मंदिरों की नगरी उन है यहां गुप्त कालीन* ( ईसा 300 ) से परमार कालीन ( ई. 1000 ) तक अनेक मंदिर है महाकालेश्वर मंदिर,ओंकारेश्वर मंदिर,नीलकण्ठेश्वर महादेव मंदिर,बल्लेश्वर महादेव मंदिर, शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, जैन चौबारा डेरा आदि आदि इसी मे से एक है महालक्ष्मी माँ का अत्यन्त प्राचीन मंदिर स्थानीय मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंगल विवाह यही हुआ था
मंदिर के समीप ही विवाह स्थल के रूप में नारायण कुंड हैं । जहाँ नदी के तट पर पत्थरों पर विवाह मंडप के चार छिद्र और ऐरावत हाथी पर आई बारात के कारण ऐरावत हाथी के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। वर्षों तक माँ का सिंदूर चोले मे सामान्य स्वरूप प्रतित हो रहा था किंतु गत वर्ष जब माता का सिंदूर चोला छुटा तो अद्भुत, अद्वितीय,नयनाभिराम स्वरूप सामने आया। छ: हाथों वाले सोम्य स्वरूप में कमल, कलश, धन और अभय वरदान देते हुए है।माता दिन मे तीन बार अपना रुप बदलती है। माता के दर्शन करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। वैसे तो पुरे वर्ष दर्शन और मान मन्नत पूरी होने वाले भक्तो की भीड़ होती है किन्तु नवरात्रि में दर्शन करने वालों की संख्या हजारों में होती है।ग्राम के तालाब में 32 पंखुड़ियों वाले दुर्लभ कमल भी मौजूद है।