दम तोड़ते हुए मां ने कहा था- मेरे बच्चों को बचा लेना, 100 दिन में डेढ़ किलो बढ़ गया वजन

भोपाल में 100 दिन के संघर्ष के बाद दो बच्चे जिंदगी की जंग जीत गए हैं। बच्चों की मां की कुछ दिन पहले मौत हो चुकी है। दम तोड़ते हुए उसने कहा था कि मुझे नहीं, मेरे बच्चों को बचा लीजिए। 24 सप्ताह के प्री-मैच्योर ट्विंस बच्चों की जान डॉक्टरों ने बचा ली। इस दौरान बच्चों का वजन डेढ़ किलो से ज्यादा बढ़ गया। करीब 4 महीने चले इलाज के बाद शनिवार को बच्चों को परिवार वालों को सौंप दिया गया। डॉक्टरों का दावा है कि प्रदेश में इस तरह का पहला मामल
पेशे से सिंगर रही दीप्ति परमार ने 14 नवंबर 2022 को 24 हफ्ते के जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था। चूंकि, डिलीवरी 6 महीने में हुई थी, इसलिए डॉक्टर्स के पास मां और बच्चों में से किसी एक को ही बचाने का विकल्प था। दीप्ति ने डॉक्टर्स से कहा- मुझे नहीं, मेरे बच्चों को बचा लो। प्रेग्नेंसी के दौरान दीप्ति को पीलिया भी हुआ। उनकी एक किडनी भी फेल हो गई थी। दिसंबर महीने में दीप्ति ने दम तोड़ दिया।
इसलिए हुई प्री-मैच्योर डिलिवरी
दीप्ति के पति शैलेंद्र परमार ने बताया कि करीब आठ साल पहले दीप्ति का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उसकी मां ने किडनी दी थी। स्वस्थ होने के बाद प्रेग्नेंसी प्लान की। प्रेग्नेंसी के दौरान दीप्ति की हालत खराब होने लगी, तब जाकर पता चला कि उसे पीलिया भी है। इसके चलते बच्चों की प्री-मैच्योर डिलिवरी की गई। दीप्ति जानी-मानी क्लासिकल सिंगर थी।
जन्म के समय सिर्फ 410 ग्राम वजन था
बच्चों को प्रोफेसर कॉलोनी स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. राहुल अग्रवाल ने बताया कि जन्म के समय लविक और लवीश नाम के बच्चों का वजन मात्र 410 ग्राम था। फेफड़े, ब्रेन और आंतें भी पूरी तरह विकसित नहीं हुए थे। करीब 10 दिन तक दोनों बच्चे बंसल हॉस्पिटल में रहे। इस दौरान उनका वजन घटता गया। इसके बाद प्रोफेसर कॉलोनी स्थित प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट किया गया।
यहां लविक 32 और लवीश 35 दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहे। इस दौरान कई मर्तबा उनकी सेहत बिगड़ी। लेकिन, दुआओं और दवाओं से बच्चों ने इन मुश्किलों को मात दे दी। 100 दिन तक चले इलाज के बाद अब बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं। शनिवार को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। दोनों बच्चों का वजन भी दो-दो किलोग्राम हो गया है। अस्पताल में बच्चों का नर्सिंग स्टाफ ने भी पूरा ध्यान रखा। बच्चे अब चार महीने के हो गए हैं।
दूसरे नवजात बच्चों की मां का दूध पिलाया
अस्पताल में भर्ती लविक और लवीश का मां की दिसंबर के पहले सप्ताह में मल्टी ऑर्गन फेल होने से मौत हो गई। शुुरू से ही बच्चों को मां का दूध नहीं मिला। ऐसे में बच्चों को फीड कराने के लिए मदर मिल्क, अस्पताल में भर्ती दूसरे नवजात बच्चों की मांओं ने दिया
डॉ. राहुल अग्रवाल ने बताया कि एक तरफ बच्चों को इंफेक्शन से बचाना था, क्योंकि इतने छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इनकी लेजर थेरेपी भी की गई, क्योंकि आम तौर पर इतने छोटे बच्चों के साथ लंग्स और रेटिनोपैथी ऑफ प्री-मैच्योरिटी जैसी दिक्कत का सामना भी करना पड़ता है।
मां ने वीडियो कॉल पर देखा था बच्चों को
बच्चों के पिता शैलेंद्र परमार ने बताया कि दोनों बच्चों के पैदा होने के कुछ दिनों बाद दीप्ति का निधन हो गया था। इस दौरान बच्चों को प्रत्यक्ष तो उसने नहीं देखा। हालांकि, वीडियो कॉल पर उसने बच्चों को देखा था। जब हालत गंभीर हो गए, तब डॉक्टर्स ने कहा कि हम या तो बच्चों को बचा सकते हैं या फिर मां को, तब दीप्ति ने खुद ही कहा कि बच्चों की जान बचाओ।
दावा- प्रदेश का पहला मामला
डॉ. राहुल ​​अग्रवाल ने बताया कि 26 हफ्ते से कम प्रेगनेंसी में नवजात को बचाना संभव नहीं होता। ऐसे करीब 20-21 बच्चे ही हैं, जो बच पाए हैं। उनका दावा है कि यह प्रदेश का पहला और देश दूसरा मामला है, जिसमें 24 हफ्ते के जुड़वा बच्चों को बचाया गया। उन्होंने बताया कि इससे पहले अमेरिका में दुनिया का सबसे कम समय के बच्चे को बचाया गया था, जिसकी उम्र 22 हफ्ते 1 दिन थी। फिर ऐसा मामला भारत में 23 हफ्ते 3 दिन का है।
शनिवार को बच्चों की सुपुर्दगी के लिए अस्पताल में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान अस्पताल को भी सजाया गया। कार्यक्रम में विधायक रामेश्वर शर्मा भी मौजूद रहे। उनकी मौजूदगी में बच्चों को परिजनों को सौंपा गया।

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Author: jtvbharat