फुसफुसाते तो जंगली हाथी भी हैं लेकिन उनकी भाषा और संवेदनों को समझने वाले लोग शायद नहीं हैं। यही कारण है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र के गांवों में हाथियों की दहशत सर्वाधिक है। यहां हाथियों को एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है और वन विभाग को हाथी-मानव द्वंद्व रोकने के लिए कार्यशालाओं पर लाखों रुपये फूंकने पड़ रहे हैं।
वर्ष 2018 से अब तक के घटनाक्रम पर अगर नजर डालें तो बांधवगढ़ में जंगली हाथियों के आगमन के बाद उन्हें आवांछित ही समझा गया जबकि वे भी जैव विविधता के आवश्यक अंग हैं। बांधवगढ़ के आसपास निवास करने वाले लोगों ने हाथियों के आगमन और उनके यहां बस जाने के बाद इस पर गर्व करने की जगह अपने चारों तरफ भय का एक ऐसा वातारण तैयार कर लिया जिससे हाथी हिंसक लगने लगे।
संवेदना जरूरी : कार्तिकी गोंसाल्विस द्वारा निर्देशित तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिजर्व में दो अनाथ हाथियों और उनके देखभाल करने वाले एक स्वदेशी आदिवासी जोड़े के बीच बंधन की कहानी ने आस्कर जीतकर देश में वन्य प्रणियों के प्रति संवेदना का संचार किया है।
वन्य प्राणी बांधवगढ़ फाउंडेंशन की प्रबंध न्यासी और टीसीसी की स्टेट कोआर्डिनेटर वंदना द्विवेदी का कहना है कि ऐसी ही संवेदना हाथियों के प्रति बांधवगढ़ के आसपास रहने वाले ग्रामीणों के मन में भी जगाने की आवश्यकता है ताकि वे भी एलिफेंट व्हीस्परर्स यानी फुसफसाहट को समझ सकें।
2018 में आए जंगली हाथी : बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जंगली हाथियों का आना-जाना लंबे समय से बना हुआ है लेकिन वर्ष 2018 अक्टूबर में आने के बाद जंगली हाथी वापस नहीं गए। बांधवगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में 50 से ज्यादा जंगली हाथी हैं जो छोटे-छोटे झुंड में बंटे हुए हैं। इन हाथियों को जंगल में अनुकूल माहौल मिल रहा है जिससे वे यहां बस गए हैं। यह हाथी कभी-कभार जंगल से लगे खेतों का रुख कर लेते हैं जिससे किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं।
हाथियों की मौत : वर्ष 2018 में बांधवगढ़ आने के बाद कई हाथियों की रहस्यमयी मौत हो चुकी है। खास बात यह है कि हाथियों की मौत करंट और जहरखुरानी से हुई है।
बांधवगढ़ के डिप्टी डायरेक्टर लवित भारती ने कहा कि द एलिफेंट व्हीस्परर्स एक अच्छी डाक्युमेंट्री फिल्म है जिसे बांधवगढ़ के आसपास रहने वालों को दिखाया जाना चाहिए। इस संदर्भ में हम प्रस्ताव भेजेंगे और यह फिल्म लोगों को दिखाई जाएगी।