परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी ने अपनी अमृतवाणी कहा है कि प्रकृति की सारी चीजें संतुलित हैं। संतुलन बनाये रखने का कार्य श्री गणेश ही करते हैं, वे ही आपको संतुलन प्रदान करते हैं। स्थिर होने पर श्री गणेश संतुलन लाते हैं, जब ये दायें की ओर जाने लगते हैं तो कोई निर्माणकारी कार्य शुरू होता है, तब जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ ये करते हैं, परन्तु विपरीत दिशा में चल पड़े तो विध्वंसक हो उठते हैं। इनके संतुलन के बिना मानव जीवन नहीं चल सकता। इनके दोनों गुणों रचनात्मक तथा विध्वंसक का संतुलित होना आवश्यक है। सहज योग में हर साधक को मिलने वाला सबसे बड़ा वरदान है संतुलित अवस्था, संतुलित अवस्था का अर्थ है भूतकाल की यादें, अतृप्त इच्छाओं के दुष्प्रभाव से और भविष्य की योजना व चिंतावस्था से पूर्ण रुपेण मुक्त होकर अपने वर्तमान में स्थित होना, जब हम सहज योग में स्थिर होकर ध्यान धारणा करते हैं तब पंचतत्व की मदद से हम अपनी नाड़ियों को संतुलित करते हैं l हमारी तीन नाड़ियों में बाईं और की नाड़ी इड़ा, दाहिनी ओर की नाड़ी पिंगला शुद्ध होती है l जिससे साधक वर्तमान में स्थित होता है l जब साधक वर्तमान में स्थित होता है, तब हर कार्य अपेक्षाकृत ज्यादा अच्छी तरह से कर पाता है जीवन एक सही दिशा में बढ़ने लगता है l क्योंकि बाईं नाड़ी इच्छा शक्ति की भी नाड़ी है l यदि इच्छा शुद्ध और स्वस्थ होगी तभी हमारी दाहिनी नाड़ी उस इच्छा को पूर्ण करने के लिए सकारात्मकता से कार्य करेगी l इसके विपरीत यदि व्यक्ति अपने भूतकाल से ज्यादा जुड़ा रहता है तो स्थिति अस्तव्यस्त हो जाती है जिसके लिए हमारी परम पूज्य श्री माताजी ने विंध्वसकारी शब्द का प्रयोग किया है l संपूर्ण प्रकृति भी श्री गणेश के आशीर्वाद से ही चलायमान है l मानव को अपने उत्थान मार्ग को प्रशस्त करने हेतु प्रयासरत होना चाहिए और मार्ग तलाशना चाहिए इसके लिए सहज योग से जुड़ें और संतुलन का आनंद उठाते हुए जीवन को उत्साह व आनंद पूर्वक जियें. सहज योग पूर्णतया नि:शुल्क है l
अपने आत्म साक्षात्कार को प्राप्त करने हेतु अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।